मंगल पर प्राचीन जीवन के संकेत: पर्सिवरेंस ने जेज़ेरो क्रेटर में अब तक का सबसे बड़ा सुराग खोजा

मंगल पर प्राचीन जीवन के संकेत: पर्सिवरेंस ने जेज़ेरो क्रेटर में अब तक का सबसे बड़ा सुराग खोजा

जेज़ेरो की मिट्टी में ‘तेंदुए के धब्बे’: पर्सिवरेंस की खोज ने उम्मीदें बढ़ाईं

मंगल की एक चट्टान पर इंद्रधनुषी रंग और ‘तेंदुए के धब्बे’ जैसे निशान—यही वह दृश्य था जिसने नासा के वैज्ञानिकों को चौंका दिया। जुलाई 2024 में जेज़ेरो क्रेटर के भीतर एक प्राचीन नदी घाटी, नेरेट्वा वैलिस, में पर्सिवरेंस रोवर को ‘चेयावा फॉल्स’ नाम की करीब एक मीटर लंबी चट्टान मिली। यहीं से ‘क्या सच में मंगल पर कभी जीवन रहा?’ जैसे पुराने सवाल को नई ताकत मिली।

इस इलाके को ‘ब्राइट एंजल’ फॉर्मेशन कहा जाता है—ऐसी तलछटी परतें, जिनमें महीन मिट्टी और चिकनी मिट्टी (क्ले, सिल्ट) शामिल हैं। पृथ्वी पर यही तरह की परतें सूक्ष्मजीवों के निशान को लाखों-करोड़ों साल तक सुरक्षित रखती हैं। पर्सिवरेंस ने जो देखा, उसका विज्ञान से सीधा रिश्ता है: लाल हिस्सों में लोहे से भरपूर मिट्टी, बैंगनी पट्टियों में लोहा और फॉस्फोरस, जबकि पीले-हरे भागों में लोहा और सल्फर की मौजूदगी। ये वही तत्व हैं जिनसे पृथ्वी पर कई तरह के सूक्ष्मजीव ऊर्जा निकालते हैं।

चट्टान पर दिखे धब्बों को टीम ने अनौपचारिक तौर पर ‘लेपर्ड स्पॉट्स’ और ‘पॉपी सीड्स’ का नाम दिया। ये सिर्फ अलग-अलग रंग नहीं हैं; ये रासायनिक नक्शे हैं जो बताते हैं कि किसी समय पानी बहा, खनिज बने-बिगड़े, और ऑक्सीकरण-अपचयन जैसे जटिल रिएक्शन चले। इसी वजह से वैज्ञानिक पहली बार इतने मजबूती से कह पा रहे हैं—यहां संभावित ‘बायोसिग्नेचर’ मौजूद हो सकते हैं।

‘बायोसिग्नेचर’ का मतलब है ऐसे रसायन या बनावट जो जीव से उत्पन्न हो सकती हैं, लेकिन जिनकी जैविक उत्पत्ति साबित करने के लिए ज्यादा सबूत चाहिए। नासा की साइंस मिशन निदेशालय की निक्की फॉक्स ने इसे “अब तक का सबसे स्पष्ट संकेत” कहने के साथ सावधानी जोड़ी—यह खोज उम्मीद जगाती है, पर अंतिम फैसला अधिक विश्लेषण के बाद ही होगा।

रोवर ने इस नमूने का आधिकारिक नाम ‘सैफायर कैन्यन’ रखा है और उसका एक कोर ट्यूब में सील भी किया गया है, ताकि आगे चलकर पृथ्वी पर लाया जा सके। चट्टान की सतह पर लाल, हरे, बैंगनी और नीले रंगों की धारियां सिर्फ देखने में खूबसूरत नहीं हैं—ये अलग-अलग रासायनिक ज़ोन हैं, जो उस समय की परिस्थितियों की कहानी सुनाते हैं जब जेज़ेरो में झील और नदी प्रणालियां सक्रिय थीं।

यह खोज क्यों बड़ी है? क्योंकि यहाँ लोहे, सल्फर, फॉस्फोरस और ऑर्गैनिक कार्बन—चारों साथ दिखे। पृथ्वी पर लोहे और सल्फर के यौगिकों से ऊर्जा लेने वाले सूक्ष्मजीव (जैसे आयरन-ऑक्सीडाइज़र और सल्फर-रिड्यूसर) असामान्य नहीं हैं। जब एक ही जगह पर ये ‘ऊर्जा मेन्यू’ मिले और साथ में ऑर्गैनिक संकेत भी, तो वैज्ञानिकों को लगा कि यहाँ प्राचीन सूक्ष्मजीवों के लिए माहौल अनुकूल रहा होगा।

स्टोनी ब्रुक यूनिवर्सिटी के जोएल हुरोविट्ज़ और टीम का कहना है: अलग-अलग कंपाउंड का यही संयोजन मायने रखता है। ‘नेचर’ में प्रकाशित उनके पेपर के मुताबिक, डेटा ने रासायनिक ऊर्जा के कई संभावित स्रोतों की ओर इशारा किया, लेकिन “आकर्षक संकेत” और “पुख्ता सबूत” अलग बातें हैं—और यही फर्क आगे की जांच तय करेगी।

अब एक जरूरी बात साफ कर लें: अभी तक किसी ने मंगल पर जीवन की घोषणा नहीं की है। जो मिला है, वह संभावित संकेत है—ठोस दावा नहीं। मंगल की चट्टानों में ऐसे पैटर्न भू-रासायनिक प्रक्रियाओं से भी बन सकते हैं, जैसे लीसेगैंग बैंडिंग, हेमेटाइट/मैग्नेटाइट का अवक्षेपण, या सल्फेट-कार्बोनेट का देर से बनना। इसलिए टीम दोनों रास्तों—जैविक और अजैविक—की जांच साथ-साथ कर रही है।

यह पूरा काम पर्सिवरेंस के वैज्ञानिक उपकरणों की टीम ने मिलकर किया। मैस्टकैम-ज़ेड ने उच्च-रिजॉल्यूशन रंगीन तस्वीरें दीं, जिससे ‘धब्बे’ और धारियां साफ दिखीं। सुपरकैम ने लेज़र स्पेक्ट्रोस्कोपी से सतह की रासायनिक संरचना नापी। पिक्सल (PIXL) ने एक्स-रे माइक्रोएनालिसिस से तत्वों का सूक्ष्म मानचित्र बनाया, और शरलॉक (SHERLOC) ने यूवी रमन और फ्लोरोसेंस के जरिए ऑर्गैनिक संकेतों और खनिजों का संबंध देखा। वॉटसन कैमरे ने टेक्सचर—यानी दाने, परतें, माइक्रो-क्रैक्स—को नजदीक से दर्ज किया।

जेज़ेरो क्रेटर को शुरुआत से ही एक बड़ी वजह से चुना गया था—यह एक प्राचीन झील का तल है, जहां नदियां कई अरब साल पहले पानी लाती थीं। पर्सिवरेंस फरवरी 2021 में यहां उतरा और करीब ढाई-तीन साल में 18 मील (लगभग 29 किलोमीटर) चलता हुआ उस नदी घाटी तक पहुँचा, जिसकी चौड़ाई लगभग एक चौथाई मील है। जिस फॉर्मेशन में ‘चेयावा फॉल्स’ मिला, वह तलछटी इतिहास का एक पन्ना है, जो बताता है कि पानी कब आया, कितनी देर रुका और उसके बाद चट्टान ने क्या-क्या झेला।

अगर आप सोच रहे हैं कि ‘रंग-बिरंगे धब्बे’ क्यों अहम हैं, तो एक सीधा जवाब है—रेडॉक्स ग्रेडिएंट। जहां एक ही चट्टान में लोहे का अलग-अलग रूप (ऑक्सीकृत और कम-ऑक्सीकृत), सल्फर के यौगिक और फॉस्फोरस साथ दिखाई दें, वहां ऊर्जा प्रवाह का संकेत मिलता है। पृथ्वी पर ऐसे ही माइक्रो-हैबिटैट्स में सूक्ष्मजीव पनपते हैं—स्पेन की रियो टिंटो नदी, कुछ ज्वालामुखीय झरनों और नमकिली झीलों में ऐसे उदाहरण दिखते हैं।

पर यही तस्वीर उलट भी सकती है। मंगल पर ज्वालामुखीय गैसों, अल्ट्रावायलेट किरणों और ब्राइन्स (खारे घोल) ने भी अजीब रसायन बनाए हैं। बहुत संभव है कि ‘धब्बे’ देर से बने खनिज नोड्यूल हों—जैसे ओपोर्च्युनिटी रोवर ने मरीडियानी प्लैनम में हेमेटाइट ‘ब्लूबेरीज़’ देखे थे। इसलिए टीम किसी एक व्याख्या पर कूद नहीं रही।

रोवर ने जहां-जहां ड्रिल किया, वहां संदूषण नियंत्रण के सख्त प्रोटोकॉल अपनाए गए। हर कोर ट्यूब अल्ट्रा-स्वच्छ है, सीलिंग के बाद उनका हैंडलिंग ट्रैक किया जाता है। वजह साफ है—धरती पर जीवन के अंश गलती से नमूनों में मिल गए, तो नतीजे उलझ जाएंगे। इस काम में त्रुटि की गुंजाइश नहीं है।

जमीनी बनावट भी दिलचस्प है। ‘ब्राइट एंजल’ की परतें महीन दानों से बनी हैं—ऐसी जगहें जहां माइक्रोफॉसिल जैसे फीचर, अगर कभी बने हों, तो सूक्ष्म स्तर पर संरक्षित हो सकते हैं। पर्सिवरेंस ने जिन माइक्रो-टेक्सचर्स की तस्वीरें भेजी हैं, उनमें वेनिंग (पतली नसें), सिमेंटेशन और कभी-कभी गोलाकार-कंकर जैसी गांठें दिखीं, जो रसायनों के देर से जमा होने का संकेत देती हैं।

एक बड़ी खबर यह भी है कि ऑर्गैनिक कार्बन के संकेत बार-बार उसी भू-परिप्रेक्ष्य में दिखे हैं, जहां पानी की कहानी मजबूत है। मंगल पर ऑर्गैनिक कंपाउंड पहले भी मिले हैं, पर उनका संदर्भ (किस खनिज के साथ, किस परत में, किस तापमान-निर्देश के साथ) कम साफ था। इस बार संदर्भ ज्यादा सटीक है—इसी वजह से वैज्ञानिकों का भरोसा बढ़ा है।

तो क्या हम कह सकते हैं—मिल गया प्रमाण? अभी नहीं। असली मोड़ तब आएगा जब ‘सैफायर कैन्यन’ और ऐसे अन्य कोर सैंपल धरती की लैब में पहुंचेंगे। वहां दो-तीन निर्णायक टेस्ट होंगे—आइसोटोप अनुपात (जैसे कार्बन-13/12, सल्फर-34/32), नैनो-स्तर की बनावट (क्या कोशिका-जैसी दिवारें या परतदार माइक्रो-संरचनाएं दिखती हैं), और ऑर्गैनिक्स का विस्तृत सिग्नेचर (क्या वे जीव-उत्पत्ति के पैटर्न से मेल खाते हैं या ज्वालामुखीय/अंतरिक्षीय स्रोत से)।

नासा का मार्स सैंपल रिटर्न (MSR) प्रोग्राम इन्हीं सवालों के जवाब के लिए है। एजेंसी एक संशोधित योजना पर काम कर रही है, ताकि 2030 के दशक में चुनिंदा ट्यूब धरती तक लाई जा सकें। समयरेखा और बजट पर चर्चा जारी है, लेकिन वैज्ञानिक प्राथमिकता साफ है—अगर कहीं से पक्का सबूत मिलना है, तो वह उच्च-स्तरीय लैब में ही मिलेगा।

अब आगे क्या: नमूने धरती पर, और रोवर के अगले कदम

अब आगे क्या: नमूने धरती पर, और रोवर के अगले कदम

पर्सिवरेंस आगे भी इसी नदी-डेल्टा के किनारों और झील-तल के हिस्सों में ड्रिलिंग करेगा, ताकि अलग-अलग उम्र और माहौल की परतों का तुलनात्मक रिकॉर्ड बन सके। लक्ष्य यह है कि ऊर्जा-समृद्ध रसायनों, पानी की अवधि, और ऑर्गैनिक संकेतों की ‘ओवरलैप’ जगहें ज्यादा से ज्यादा पहचान ली जाएं। इससे सैंपल रिटर्न के लिए सबसे मूल्यवान ट्यूब चुने जाएंगे।

वैज्ञानिकों के सामने कुछ बड़े खुले सवाल हैं:

  • क्या ‘लेपर्ड स्पॉट्स’ जैविक चयापचय के सूचक रेडॉक्स ग्रेडिएंट हैं, या लीसेगैंग जैसी अजैविक बैंडिंग?
  • क्या ऑर्गैनिक संकेत जटिल और पॉलिमराइज्ड हैं, या साधारण और अंतरिक्षीय धूल से आए?
  • क्या माइक्रो-स्तर पर कोशिका-जैसी आकृतियां, कॉलोनी-नुमा परतें, या स्ट्रोमैटोलेट जैसी बनावट दिखती हैं?
  • क्या कार्बन और सल्फर आइसोटोप्स वह ‘झुकाव’ दिखाते हैं जो जीव प्रक्रियाएं छोड़ती हैं?
  • क्या अलग-अलग परतों की उम्र मिलाकर एक निरंतर जल-इतिहास बनता है?

इनमें से हर सवाल का जवाब मिलकर एक कहानी बनाता है। विज्ञान में ‘एक फोटो’ से फैसला नहीं होता; रसायन, बनावट, आइसोटोप, और भू-परिप्रेक्ष्य—चारों जब एक दिशा में इशारा करते हैं, तभी भरोसा बनता है।

एक नजर इतिहास पर भी डालें। ओपोर्च्युनिटी ने 2004 में हेमेटाइट ‘ब्लूबेरीज़’ दिखाईं—वह पानी की मौजूदगी का मजबूत सबूत था, पर जीवन का नहीं। क्यूरियोसिटी ने गेल क्रेटर में ऑर्गैनिक अणु दर्ज किए, मिथेन की मौसमी लय देखी—फिर भी निष्कर्ष सावधानी वाले रहे। पर्सिवरेंस की खासियत यह है कि वह ‘जीवन के संकेत’ वाले भू-परिप्रेक्ष्य को पहले चुनता है और फिर उच्च-रिजॉल्यूशन रसायन-मानचित्र बनाता है।

कई पाठकों के मन में एक सीधा सवाल है: अगर मंगल पर कभी जीवन था, तो कैसा था? सबसे यथार्थ जवाब—सूक्ष्मजीव-स्तर का, जो रसायनों से ऊर्जा लेता हो। ऑक्सीजन से भरा, जटिल जीव-जगत वहां शायद नहीं था; पर लोहे या सल्फर के सहारे चलने वाले माइक्रोब, कम-रोशनी और खारे पानी में, यह तस्वीर विज्ञान के दायरे में है।

और अगर यह सब अजैविक निकला तो? तब भी बड़ी जीत है। क्योंकि हमें मंगल के जल-और-चट्टान रसायन की ‘किताब’ का वह पन्ना मिल जाएगा जो अब तक खाली था। इससे ग्रहों के विकास, रहने योग्य परिस्थितियों और पृथ्वी के शुरुआती जीवन को समझने की कुंजी मिलती है।

अंत में, उम्मीद और सब्र साथ-साथ चलते हैं। पर्सिवरेंस ने जो सैंपल सील किए हैं, वे भविष्य की लैबों के लिए टाइम कैप्सूल हैं। जब ये ट्यूब धरती पर आएंगे, तब माइक्रोमीटर से भी छोटे सुराग बड़े सच बताएंगे। अभी के लिए इतना कहना वाजिब है—जेज़ेरो की यह चट्टान उन सबसे मजबूत सुरागों में है जिनकी तलाश मानवता दशकों से कर रही थी, और यह तलाश हमें मंगल पर जीवन के सवाल के बेहद करीब ले आई है—जवाब बस थोड़ी दूर पर है।