आपने भी देखा होगा कि मूवी और स्पोर्ट्स चैनल HD में मिलते हैं, लेकिन कई न्यूज चैनल अभी तक SD में ही चलते हैं। क्यों? इसका कारण सिर्फ एक नहीं, बल्कि कई व्यावसायिक और तकनीकी वजहें हैं। यहां सीधे और सरल तरीके से समझते हैं।
पहला कारण खर्च है। HD प्रसारण के लिए ज्यादा कैमरे, बेहतर स्टूडियो सेटअप और उच्च गुणवत्ता वाले एन्कोडर चाहिए होते हैं। ये सब महंगे हैं और रोज़मर्रा की खबरों का लाभ-लाभांश कम होने पर चैनलों के लिए तुरंत सार्थक नहीं लगते।
दूसरा कारण वितरण और बैंडविड्थ है। सैटेलाइट और केबल ऑपरेटरों को हर चैनल के HD स्ट्रीम के लिए अतिरिक्त स्पेस देना पड़ता है, जिसकी कीमत चैनलों या ऑपरेटरों को जानी पड़ती है। छोटे या क्षेत्रीय न्यूज चैनल उस लागत को वहन नहीं कर पाते।
तीसरा, कमाई का मॉडल। विज्ञापनदाता अक्सर दर्शकों की संख्या और लक्षित ऑडियंस पर ध्यान देते हैं न कि केवल पिक्सल पर। यदि एक चैनल के दर्शक बेस और विज्ञापन रेवेन्यू कम हैं, तो HD में जाने का निवेश कठिन होता है।
चौथा कारण भाषा और क्षेत्रीय विविधता है। भारत में हर राज्य और भाषा के लिए अलग चैनल हैं। हर एक का HD डुप्लीकेट बनाना मतलब कई गुना ज्यादा लागत और सैटेलाइट स्पेस।
पाँचवा, तकनीकी चुनौतियाँ—लाइव रिपोर्टिंग में फास्ट बदलाव, दूरदराज जगहों से आने वाले लो-बैंडविड्थ फीड और मोबाइल-आधारित रिपोटिंग के कारण HD क्वालिटी बार-बार बनाए रखना मुश्किल होता है।
चैनलों के लिए एक व्यवहारिक रास्ता है हाइब्रिड मॉडल: प्रमुख शो और शाम की हेडलाइंस HD में प्रसारित करें, बाकी समय SD रखें। इससे लागत कंट्रोल में रहेगी और दर्शकों को बेहतर अनुभव भी मिलेगा।
डिस्ट्रीब्यूटर्स और DTH ऑपरेटर मिलकर साझा HD ट्रांसमिशन स्पेस बना सकते हैं या पे-पर-व्यू/स्पॉन्सरशिप मॉडल अपनाकर छोटे चैनलों को HD में आने का अवसर दे सकते हैं।
दर्शक की भूमिका भी मायने रखती है। अगर आप चाहते हैं कि आपका पसंदीदा न्यूज चैनल HD में आए, तो ऑपरेटर से HD पैकेज के बारे में पूछें, चैनल से सोशल मीडिया पर मांग जताएं और HD प्लेटफॉर्म पर कंटेंट देखने से चैनलों को संकेत मिलेगा कि निवेश फायदे का हो सकता है।
ऑनलाइन विकल्प भी तेजी से बढ़ रहे हैं—कई न्यूज ब्रांड्स अब अपनी HD स्क्रैप्ड रिपोर्टिंग और क्लिप्स यूट्यूब, वेबसाइट व मोबाइल ऐप पर दे रहे हैं। इससे दर्शक कम लागत में अच्छा क्वालिटी अनुभव पा सकते हैं।
भविष्य में जैसे-बढ़ते बैंडविड्थ, सस्ता सैटेलाइट स्पेस और विज्ञापन मॉडल बदलेंगे, HD न्यूज़ चैनलों की संख्या भी बढ़ सकती है। अभी के लिए समझदारी यही है कि चैनल और ऑपरेटर मिलकर लागत-बेनेफिट का संतुलन रखें और दर्शक अपनी पसंद बताकर दबाव बनाएं।